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कविता

साधों के जलयान

ब्रजराज तिवारी ‘अधीर’


तुमने केवल बड़ी-बड़ी सुरमई हिरन सी आँखें देखीं,
उन आँखों में तिरने वाले साधों के जलयान नहीं देखे।
तुमने केवल नरम-गुलाबी पंखुरियों से खुले अधर के पाटल देखे,
उन अधरों पर, सिसक रहे अरमान नहीं देखे।
किंतु मित्र! मैंने देखी हैं बड़ी-बड़ी वे मौन उदासी आँखें जिनमें
साधों के जलयान असंख्यों डूब गए हैं,
मुरझ गई पंखुरियों जैसे अधर जिन पर
युग संचित अरमान तड़प कर सूख गए हैं,
और आज फिर, वे ही आँखें साधों के टूटे-फूटे जलयान असंख्यों,
मुरझ गई पंखुरियों जैसे अधर, साथ में मरे हुए अरमान असंख्यों,
तिर आते हैं मेरी आँखों में!

 


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